भगवान भोरमदेव मंदिर :
भगवान शिव को समर्पित मंदिर
स्थापना : 1089 ई. में (11 वीं सदी में)
निर्माता : गोपाल देव के शासन काल में लक्ष्मण देव द्वारा
राजवंश : फणी नाग वंश (गोंड़ जाति के थे)
स्थान : कबीरधाम जिले में
निर्माण शैली : नागर या चंदेल शैली
छत्तीसगढ़ का खजुराहो : मैथुन शैली के मूर्तियों के कारण इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है |
यह मंदिर 5 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है जिस पर कई देवी देवताओ की मुर्तिया बनी है | मंदिर में एक चौकोर मण्डप है, एक गर्भगृह है | यह मंदिर 16 स्तम्भों पर खड़ा है | यहाँ 3 प्रवेश द्वार है |
भोरमदेव, गोंड जाति के देवता हैं, जो "शिवजी" का ही एक नाम है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव अपने ख़ास और अलग अलग रूप में हैं। भगवान शिव को गोंड़ जनजाति के लोग भोरमदेव कहते हैं।
एलेक्जेंडर कनिंघम ने कहा था की उन्होंने जितने सुन्दर अलंकृत मंदिर देखे है उनमें से ये एक है |
भोरमदेव मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य
मंदिर के चारो ओर सतपुड़ा की मैकल पर्वत श्रेणी है। जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने ही सुंदर हरी भरी पहाड़ियों के बीच सुंदर तालाब है। जहाँ बोटिंग भी होती है। पर्यटक जब इस तालाब में नाव से विचरण करते हैं। तो आसपास देखकर अत्यंत ही मानसिक शांति और किसी स्वर्ग में विचरण करने जैसी अनुभूति होती है। चूँकि मंदिर प्राकृतिक परिवेश में बसा हुआ है, इसलिए यहाँ के नज़ारों में अपना अलग ही आकर्षण है।मैकल की पहाड़ियों के बीच यहाँ की शानदार पृष्ठभूमि और वातावरण मन मोह लेने वाला प्रतीत होता है। हरी भरी सुंदर पहाड़ियों के बीच और तालाब के किनारे स्थित मंदिर के चारों ओर का नज़ारा और इस मंत्रमुग्ध नज़ारों के बीच भोरमदेव मंदिर का दर्शन सचमुच आपको मोहित किये बग़ैर नहीं रह सकेगा।
🚩 || हर हर महादेव || 🚩
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