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छत्तीसगढ़ की 29 जमींदारियां

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छत्तीसगढ़ की जमींदारियां




छत्तीसगढ़ में कुल 29 जमींदारियां थीं, जो इस प्रकार है:- 

      1. गंडई 
      2. सहसपुर-लोहारा 
      3. पानाबरस 
      4. खुज्जी 
      5. अंबागढ़ चौंकी 
      6. सोनाखान 
      7. बिलाईगढ़ 
      8. कटंगी 
      9. कौड़िया 
      10. सुअरमार 
      11. नर्रा 
      12. देवरी 
      13. फिंगेश्वर 
      14. गुंडरदेही 
      15. भटगांव 
      16. परपोड़ी 
      17. सिल्हाटी 
      18. बरबसपुर 
      19. औंधी 
      20. पंडरिया 
      21. ठाकुरटोला 
      22. पेंड्रा 
      23. उपरोड़ा 
      24. केंद्रा 
      25. लाफा 
      26. छुरी 
      27. कोरबा 
      28. कन्तेली 
      29. चांपा


गंडई जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत 86 गांव थे, जिसे गढ़ा मंडला के राजा ने लिंगाधीर धुरगोंड नामक सरदार को दिया था। 


सहसपुर-लोहारा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत 88 गांव थे, जो कवर्धा रियासत में थे। 
  • बाद में महाबली सिंह के पुत्र बैजनाथ सिंह ने इसे पैतृक जमींदारी बनाई। 



पानाबरस जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत 123 गांव थे। 
  • 1818 में जब अंग्रेजों एवं अप्पा साहब के मध्य संघर्ष हुआ तब इस जमींदारी ने अप्पा साहब का सहयोग किया। 
  • इस जमींदार के लोकप्रिय शासक लाल श्यामशाह हुए।

 


खुज्जी जमींदारी :-

  • इस जमींदारी के अंतर्गत 833 गांव थे। 
  • इसका संस्थापक मुस्लिम सैनिक शेर खां था। 



अंबागढ़ चौकी जमींदारी :- 

  • 1000 वर्षों तक "खालुसवार गोंड" वंश के राजा ने इस पर शासन किया। 
  • रघुजी तृतीय के समय यहां दलपत शाह जमींदार थे, जिनके प्रयासों से शेरखान को खुज्जी की जिम्मेदारी प्राप्त हुई। 



सोनाखान जमींदारी :- 

  • यहां के जमींदार बिंझवार जाति के थे। 
  • संस्थापक :- बिसाई बिंझवार (1490 ई.)  
  • छत्तीसगढ़ के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह यही के जमींदार थे, जो रामराजे पोते एवं रामराय के पुत्र थे। सन 1857 का विद्रोह यहीं हुआ था। 



बिलाईगढ़ जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत 13 गांव थे।
  • रायपुर के कलचुरी शासक ने 18वीं शताब्दी में मांझीमेखार नामक व्यक्ति को तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह भू-भाग दिया था। 



कटंगी जमींदारी :- 

  • इस जिम्मेदारी के तहत लगभग 43 गांव थे। 
  • 1857 के सोनाखान विद्रोह के समय इस जमीनदारी ने अंग्रेजों का साथ दिया था। 



कौड़ियां जमींदारी :- 

  • यह पहले ताहुतदारी थी, जो बाद में जमींदार के रूप में परिवर्तित हुआ। 



सुअरमार जमींदार :- 

  • वनों से आच्छादित यह जमींदारी जोंक नदी के पश्चिम में स्थित थी, जिसके अंतर्गत 102 गांव आते थे।
  • पहले यहां सौंरा जाति का अधिकार था। 
  • माना जाता है कि इसका आदिपुरूष पुरनराय ने एक आतंकी सूअर को मारकर इस जमींदारी के स्थापना की थी। 



नर्रा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 16 गांव थे। 



देवरी जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 37 गांव थे। 
  • सोनाखान जमीदारी के साथ इनके पारिवारिक सम्बन्ध थे। 
  • इसके शासक महाराज राय ने 1857 में सोनाखान के विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों का साथ दिया।



फिंगेश्वर जमींदारी :- 

  • इस जिम्मेदारी के तहत लगभग 86 गांव थे। 
  • इनके जमींदारी गोंड जाति के थे। 



गुंडरदेही जमींदार :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 88 गांव थे। 
  • ये गोंड जाति के थे। 
  • माखन सिंह और भीषम सिंह प्रमुख शासक था। 



भटगांव जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 60 गांव थे। 
  • इनके शासक बिंझवार जाति के थे। 
  • इनका एक शासक गोपालराय रतनपुर के कलचुरी नरेश कल्याण साय के साथ मुगल दरबार गया था। 



परपोड़ी जमींदारी :- 

  • इस जिम्मेदारी के जमींदारी के अंतर्गत लगभग 24 गांव थे। 
  • यहां के जमींदार धमधा के गोंड राजा के वंशज थे। 
  • 18 वीं सदी के इस जमींदारी ने मराठों के खिलाफ विद्रोह किया था। 



चिल्हाटी जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 30 गांव थे। 
  • पहले यहां गंडई जमींदारी का हिस्सा था। 



बरबसपुर जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 25 गांव था। 
  • यह भी पहले गंडई जमीदारी का हिस्सा था। 



औंधी जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 43 गांव थे। 
  • पूर्व में यह पानाबरस जमींदारी का हिस्सा था। 



पण्डरियां जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 283 गांव थे।
  • पूर्व में कवर्धा एवं पंडरिया के मध्य पारिवारिक संबंध थे। 



ठाकुरटोला जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 81 गांव थे। 
  • यह खैरागढ़ रियासत के अंतर्गत था। 



पेंड्रा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 225 गांव थे। 
  • रतनपुर के कलचुरी ने हिंदूसिंह एवं खिन्दूसिंह नामक दो भाइयों को यह जमींदारी उपहार में दी। 



उपरोड़ा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 86 गांव थे। 
  • मराठा शासन के दौरान अजमेर सिंह व शिवसिंह यहां के जमींदार थे। 



केंद्रा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी का पद ठाकुर का था। 



लाफा जमींदारी :- 

  • यहां के जमींदार का पद दीवान का था। 
  • इस जमींदारी के अंतर्गत पाली का शिव मंदिर एवं चैतुरगढ़ का किला है। 



छुरी जमींदारी :- 

  • यह जमींदारी के अंतर्गत लगभग 143 गांव थे। 
  • यहां के जमींदार कंवर जाति के थे। 



कोरबा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 342 गांव थे।
  • रतनपुर के राजा बाहरेन्द्र साय ने इसे 1520 में लगभग सरगुजा ने छीन लिया था। 
  • इस जमींदारी की महिला शासिका धनराज कुमार थी। 



कन्तेली जमींदारी :- 

  • मुंगेली तहसील में स्थित इस जमींदारी की स्थापना रतनपुर के राजा कल्याण साय के समय हुई थी। 
  • यहाँ के एक जमींदार फतेहसिंह ने भोंसला से टक्कर ली एवं पराजित हुआ। 



चांपा जमींदारी :- 

  • इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 64 गांव थे। 
  • इसकी स्थापना कलचुरी शासक बहारेन्द्र साय के काल में हुई तथा इसने रामसिंह को यह जमींदारी सैन्य सेवा के बदले दी।




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