छत्तीसगढ़ की जमींदारियां |
छत्तीसगढ़ में कुल 29 जमींदारियां थीं, जो इस प्रकार है:-
- गंडई
- सहसपुर-लोहारा
- पानाबरस
- खुज्जी
- अंबागढ़ चौंकी
- सोनाखान
- बिलाईगढ़
- कटंगी
- कौड़िया
- सुअरमार
- नर्रा
- देवरी
- फिंगेश्वर
- गुंडरदेही
- भटगांव
- परपोड़ी
- सिल्हाटी
- बरबसपुर
- औंधी
- पंडरिया
- ठाकुरटोला
- पेंड्रा
- उपरोड़ा
- केंद्रा
- लाफा
- छुरी
- कोरबा
- कन्तेली
- चांपा
गंडई जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत 86 गांव थे, जिसे गढ़ा मंडला के राजा ने लिंगाधीर धुरगोंड नामक सरदार को दिया था।
सहसपुर-लोहारा जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत 88 गांव थे, जो कवर्धा रियासत में थे।
- बाद में महाबली सिंह के पुत्र बैजनाथ सिंह ने इसे पैतृक जमींदारी बनाई।
पानाबरस जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत 123 गांव थे।
- 1818 में जब अंग्रेजों एवं अप्पा साहब के मध्य संघर्ष हुआ तब इस जमींदारी ने अप्पा साहब का सहयोग किया।
- इस जमींदार के लोकप्रिय शासक लाल श्यामशाह हुए।
खुज्जी जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत 833 गांव थे।
- इसका संस्थापक मुस्लिम सैनिक शेर खां था।
अंबागढ़ चौकी जमींदारी :-
- 1000 वर्षों तक "खालुसवार गोंड" वंश के राजा ने इस पर शासन किया।
- रघुजी तृतीय के समय यहां दलपत शाह जमींदार थे, जिनके प्रयासों से शेरखान को खुज्जी की जिम्मेदारी प्राप्त हुई।
सोनाखान जमींदारी :-
- यहां के जमींदार बिंझवार जाति के थे।
- संस्थापक :- बिसाई बिंझवार (1490 ई.)
- छत्तीसगढ़ के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह यही के जमींदार थे, जो रामराजे पोते एवं रामराय के पुत्र थे। सन 1857 का विद्रोह यहीं हुआ था।
बिलाईगढ़ जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत 13 गांव थे।
- रायपुर के कलचुरी शासक ने 18वीं शताब्दी में मांझीमेखार नामक व्यक्ति को तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह भू-भाग दिया था।
कटंगी जमींदारी :-
- इस जिम्मेदारी के तहत लगभग 43 गांव थे।
- 1857 के सोनाखान विद्रोह के समय इस जमीनदारी ने अंग्रेजों का साथ दिया था।
कौड़ियां जमींदारी :-
- यह पहले ताहुतदारी थी, जो बाद में जमींदार के रूप में परिवर्तित हुआ।
सुअरमार जमींदार :-
- वनों से आच्छादित यह जमींदारी जोंक नदी के पश्चिम में स्थित थी, जिसके अंतर्गत 102 गांव आते थे।
- पहले यहां सौंरा जाति का अधिकार था।
- माना जाता है कि इसका आदिपुरूष पुरनराय ने एक आतंकी सूअर को मारकर इस जमींदारी के स्थापना की थी।
नर्रा जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 16 गांव थे।
देवरी जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 37 गांव थे।
- सोनाखान जमीदारी के साथ इनके पारिवारिक सम्बन्ध थे।
- इसके शासक महाराज राय ने 1857 में सोनाखान के विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों का साथ दिया।
फिंगेश्वर जमींदारी :-
- इस जिम्मेदारी के तहत लगभग 86 गांव थे।
- इनके जमींदारी गोंड जाति के थे।
गुंडरदेही जमींदार :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 88 गांव थे।
- ये गोंड जाति के थे।
- माखन सिंह और भीषम सिंह प्रमुख शासक था।
भटगांव जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 60 गांव थे।
- इनके शासक बिंझवार जाति के थे।
- इनका एक शासक गोपालराय रतनपुर के कलचुरी नरेश कल्याण साय के साथ मुगल दरबार गया था।
परपोड़ी जमींदारी :-
- इस जिम्मेदारी के जमींदारी के अंतर्गत लगभग 24 गांव थे।
- यहां के जमींदार धमधा के गोंड राजा के वंशज थे।
- 18 वीं सदी के इस जमींदारी ने मराठों के खिलाफ विद्रोह किया था।
चिल्हाटी जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 30 गांव थे।
- पहले यहां गंडई जमींदारी का हिस्सा था।
बरबसपुर जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 25 गांव था।
- यह भी पहले गंडई जमीदारी का हिस्सा था।
औंधी जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 43 गांव थे।
- पूर्व में यह पानाबरस जमींदारी का हिस्सा था।
पण्डरियां जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 283 गांव थे।
- पूर्व में कवर्धा एवं पंडरिया के मध्य पारिवारिक संबंध थे।
ठाकुरटोला जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 81 गांव थे।
- यह खैरागढ़ रियासत के अंतर्गत था।
पेंड्रा जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 225 गांव थे।
- रतनपुर के कलचुरी ने हिंदूसिंह एवं खिन्दूसिंह नामक दो भाइयों को यह जमींदारी उपहार में दी।
उपरोड़ा जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 86 गांव थे।
- मराठा शासन के दौरान अजमेर सिंह व शिवसिंह यहां के जमींदार थे।
केंद्रा जमींदारी :-
- इस जमींदारी का पद ठाकुर का था।
लाफा जमींदारी :-
- यहां के जमींदार का पद दीवान का था।
- इस जमींदारी के अंतर्गत पाली का शिव मंदिर एवं चैतुरगढ़ का किला है।
छुरी जमींदारी :-
- यह जमींदारी के अंतर्गत लगभग 143 गांव थे।
- यहां के जमींदार कंवर जाति के थे।
कोरबा जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 342 गांव थे।
- रतनपुर के राजा बाहरेन्द्र साय ने इसे 1520 में लगभग सरगुजा ने छीन लिया था।
- इस जमींदारी की महिला शासिका धनराज कुमार थी।
कन्तेली जमींदारी :-
- मुंगेली तहसील में स्थित इस जमींदारी की स्थापना रतनपुर के राजा कल्याण साय के समय हुई थी।
- यहाँ के एक जमींदार फतेहसिंह ने भोंसला से टक्कर ली एवं पराजित हुआ।
चांपा जमींदारी :-
- इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 64 गांव थे।
- इसकी स्थापना कलचुरी शासक बहारेन्द्र साय के काल में हुई तथा इसने रामसिंह को यह जमींदारी सैन्य सेवा के बदले दी।
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