मनुष्य का पाचन-तंत्र
अन्य जीवों की भाति मनुष्य भी आपने शारीरिक विकास के लिए बाह्य-वातावरण से भोजन ग्रहण करता है तथा उसका पाचन कर ऊर्जा प्राप्त करता है।
भोजन का पाचन करने के लिए मनुष्य में एक विकसीत पाचन तंत्र होता है। मनुष्य का पाचन तंत्र भी अन्य जंतुओं के समान दो भागों "आहार नाल" और "पाचक ग्रंथियों" का बना होता है।
(अ) आहार नाल:-
मनुष्य तथा अन्य स्तनियों में मुख तथा गुदाद्वार के बीच एक नली पाई जाती है, जिसे आहार नाल कहते हैं।
यह लगभग 8 से 12 मी. लंबी कई भागों की बनी होती है, जो निम्नलिखित हैं:-
- मुख व मुखगुहा (Mouth and Buccal Cavity)
- ग्रसनी (Pharynx)
- ग्रासनली (Oesophagus)
- अमाशय (Stomach)
- छोटी आंत (Small Intestine)
- बड़ी आंत (Large Intestine)
- मुख व मुखगुहा:- मुख दो जबड़ों के मध्य एक दरार के रूप में मुख गुहा में खुलता है, जो क्रमशः ऊपरी होंठ एवं निचला होंठ से घिरा रहता है।
- मुखगुहा में निम्नलिखित भाग पाए जाते हैं:- तालू, जीभ, दांत,
- तालू:- मुखगुहा एवं श्वसन मार्ग के बीच तालू पाया जाता है। इस प्रकार तालू द्वारा मुख़गुहा की छत का निर्माण होता है। तालू दो भागों में विभाजित होती है जिसे क्रमशः कठोर तालू एवं नरम तालू कहते हैं।
- जीभ:- जीभ एक मोटी, माशल एवं लचीली संरचना है, जिस पर स्वाद अंकुर पाए जाते हैं। इनमें उपस्थित स्वाद नलिकाएं द्वारा स्वाद उद्दीपन को ग्रहण किया जाता है।
- दांत:- मनुष्य में दांत विषम दन्ती, गर्त दन्ती तथा द्विबार दन्ती होते हैं, जो कि मसूड़ों पर जबड़ों की अस्थि में बने गड्ढों में स्थित होते हैं। इसके तीन भाग मूल, ग्रीवा तथा शिखर होते हैं।
- ग्रसनी:- मुखगुहा आगे की ओर फनल के आकार की गुहा में खुलती हैं जिसे ग्रसनी कहते हैं। यह लगभग 12 से.मी. लंबी नलिका है, जिससे भोजन गोलकों के रूप में ग्रासनली में पहुंचते हैं।
- ग्रासनली:- ग्रासनली लगभग 25 से.मी. लंबी एक नलिका होती है। यह ग्रसनी को अमाशय से जोड़ने का कार्य करती है। इसकी दीवारों में श्लेष्मा का स्त्रावन होता है, जिससे इनकी दीवारें नम एवं लसदार बनी रहती है।
- श्लेष्मा की उपस्थिति से भोजन आसानी से अमाशय तक सरक पर पहुंच जाता है।
- अमाशय:- यह आहार नाल का सबसे चौड़ा थैलीनुमा संरचना होता है, जिसकी दीवारों में जठर ग्रंथियां पाई जाती हैं।
- जठर ग्रंथियों द्वारा स्रावित रस में प्रोटीन पाचक एंजाइम "पेप्सिन एवं रेनिन" के साथ साथ जठर म्यूसीन भी पाया जाता है। इसमें HCL के उत्पादन के द्वारा भोजन के हानिकारक सूक्ष्म जीवों का विनाश भी करता है।
- छोटी आंत:- अमाशय में आंशिक रूप से पाचित भोजन एक सकरी नली में आता है, जिसे छोटी आंत कहते हैं। इसकी लंबाई लगभग 6.5 मीटर होती हैं।
- छोटी आंत में निम्नलिखित भाग पाए जाते हैं:- ग्रहणी, इलियम।
- ग्रहणी:- यह U-आकार की नली होती है जो लगभग 20 से.मी. लंबी होती है। इसमें पित्त वाहिनी तथा अग्नाशयी नलिका संयुक्त रूप से खुलती है।
- इलियम:- यह छोटी आंत का पिछला भाग है जिनकी लंबाई 5.5 मीटर होती है। इसकी भीतरी दीवारों पर उंगली के सामान प्रवर्ध पाए जाते हैं, जिन्हें विलाई या सूक्ष्मांकुर कहते हैं। इनके द्वारा पाचित भोजन का अवशोषण होता है।
- बड़ी आंत:- इलियम एक लंबी नली में खुलती है जिसकी लंबाई करीब 1.5 मीटर होती है, जिसे बड़ी आंत कहते हैं।
- इसके 3-भाग होते हैं:- सीकम, कोलन, मलाशय।
- बड़ी आंत का अंतिम भाग मलाशय कहलाता है जिसमें अनपचे भोजन का अस्थाई रूप से संग्रहण होता है।
(ब) पाचक ग्रंथियां:- आहार नाल से संबंधित उन ग्रंथियों को जो भोजन के पाचन में सहायता करती है पाचक ग्रंथियां कहलाती है। मानव में दो प्रकार के पाचन ग्रंथियां उपस्थित रहते हैं:- आंतरिक ग्रंथियां एवं बाहर ग्रंथियां।
- 1. आंतरिक ग्रंथियां:- इस प्रकार की ग्रंथियां आहार नाल की दीवारों में पाई जाती हैं-- जो संपूर्ण आहार नाल में स्थित श्लेष्मा ग्रंथियां, अमाशय की दीवार की जठर ग्रंथियां तथा आंत की दीवारों में उपस्थित आंत्र अथवा ब्रूनर्स या लीवर कुन ग्रंथियां होती है। यह ग्रंथियां एक या कई कोशिकाओं के समूह की बनी होती है और अपने स्राव को सीधे आहार नाल की गुहा में छोड़ती है।
- 2. बाह्य ग्रंथियाँ:- इस प्रकार की ग्रंथियाँ आहार नाल के बाहर में स्थित होती है तथा ग्रंथिल उपकला ऊत्तक की बनी होती है, जो कि अपने द्वारा स्रावित पदार्थों को नलिकाओं द्वारा आहार नाल की गुहा में पहुंचा देती है।
- a. लार ग्रंथियां:- मनुष्य में तीन प्रकार की लार ग्रंथियां पाई जाती हैं 1) सबलिंग्वल ग्रंथियां, 2) सबमैक्सिलरी ग्रंथियां, 3) पैरोटिड ग्रंथियां। लार ग्रंथियों से स्रावित लार में टाइलिन एवं लाइसोजाइम होते हैं।
- टाइलिन:- स्टार्ट को माल्टोज में बदल देता है।
- लाइसोजाइम:- जीवाणु की कोशिका भित्ति पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट करने का कार्य करता है।
- b. यकृत:- यकृत मानव शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि है। यकृत कोशिकाओं द्वारा एक विशिष्ट द्रव का स्त्रावण होता है, जिसे पित्त रस कहते हैं।
पित्त रस:- इसे पित्ताशय में एकत्रित किया जाता है।यह भोजन के हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करता है साथ ही साथ पाचन में भी सहायता करता है।
- c. अग्नाशय:- यह एक गुलाबी रंग की दूसरी बड़ी पाचक ग्रंथि है, इसके द्वारा अग्नाशयी रस स्त्रावित होता है जो भोजन के पाचन में सहायता करता है।
पाचन क्रिया:-
पाचक ग्रंथियों के द्वारा स्त्रावित पदार्थ एवं एंजाइम की सहायता से भोजन में उपस्थित जटिल कार्बनिक पदार्थों को जल अपघटन प्रक्रिया के द्वारा सरल पदार्थों में परिवर्तित करके आहार नाल की कोशिकाओं द्वारा उपयोग करना ही पाचन प्रक्रिया कहलाती है।
पाचन की क्रिया मुख से प्रारंभ होती हैं। मुख में उपस्थित दांतो की सहायता से भोजन को अच्छे से चबाया जाता है, फिर जीभ में उपस्थित लार ग्रंथि द्वारा स्रावित एंजाइम मंड का आंशिक पाचन करते हैं।
इस तरह चलाया गया भोजन ग्रसिका से होता हुआ अमाशय में पहुंचता है। अमाशय द्वारा स्रावित जठर रस प्रोटीन एवं वसा को छोटे-छोटे अणुओं में तोड़ देते हैं। तत्पश्चात भोजन छोटी आंत में पहुंचता है।
ग्रहणी जोकि छोटी आंत का अगला भाग होता है, जिसमें कि अग्नाशय द्वारा स्त्रावित अग्नाशयी रस एवं यकृत से आये पित्त रस द्वारा भोजन पर तीव्र रासायनिक क्रिया होती है। एन्जाइम भोजन में उपस्थित प्रोटीन ,कार्बोहाइड्रेट और वसा का पूर्ण पाचन करने में सक्षम होते हैं। छोटी आत का पिछला भाग जो इलियम कहलाता है, उसमें उपस्थित विलाई पाचित भोजन का अवशोषण करती है तथा अपच शेष भोज्य पदार्थ को बड़ी आंत द्वारा बहिर्क्षेपण कर दिया जाता है।
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