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छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन का प्रभाव

छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन का प्रभाव


असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में 26 दिसम्बर 1920 को पारित हुआ। जिस तरह भारत के अन्य क्षेत्रों में इस आंदोलन का प्रभाव रहा, उसी तरह ही छत्तीसगढ़ में भी इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव दिखाई पड़ता है। 


छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन के प्रभाव को दो भागो में विभाजित कर पढ़ा जा सकता है:-

    1. नकारात्मक प्रभाव 
    2. सकारात्मक प्रभाव 


1. नकारात्मक प्रभाव:-
असहयोग आंदोलन के नकारात्मक प्रभावों को हम निम्न बिन्दुओं में समझते हैं:-
  • न्यायालयों का बहिष्कार 
  • सरकारी नौकरियों का त्याग 
  • उपाधियों का त्याग 
  • कौंसिल और चुनावों का बहिष्कार 
  • विदेशी वस्तुओं का त्याग 


2. सकारात्मक प्रभाव:-
असहयोग आंदोलन के सकारात्मक प्रभावों को हम निम्न बिन्दुओं में समझते हैं:-
  • खादी का प्रचार 
  • मद्य निषेध कराना 
  • राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना 
  • राष्ट्रीय पंचायतों की स्थापना



नकारात्मक प्रभाव

न्यायालयों का बहिष्कार:-
अंग्रेजी न्यायालयों का बहिष्कार करने के लिए छत्तीसगढ़ के अनेकों महापुरुषों ने वकालत का त्याग किया। वे इस प्रकार हैं---

रायपुर से---    पं. रविशंकर शुक्ल, रामदयाल तिवारी, डी. के. मेहता, यादव राव देशमुख 

दुर्ग से---    रत्नाकर झा, घनश्याम गुप्त, गोवर्धन लाल श्रीवास्तव 

बिलासपुर---    ठा. छेदीलाल, ई. राघवेंद्र राव, वी. आर. खानखोज 

राजनांदगांव---    ठा. प्यारेलाल सिंह, बलदेव प्रसाद मिश्र 




सरकारी नौकरियों का त्याग:-
अंग्रेजी सर्कार को असहयोग के लिए निम्न ली`लोगो ने सरकारी नौकरियों का त्याग किया---

                यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, 
                सोमेश्वर शुक्ल, 
                शिवलाल वर्मा, 
                लक्ष्मी प्रसाद वर्मा



उपाधियों का त्याग:-

उपाधि

त्यागकर्ता

राय साहब

वामनराव लाखे  

बैरिस्टर कल्याणजी मोरारजी थेकर 

सेठ गोपीकिशन 

राय बहादुर

नागेन्द्रनाथ डे 

खान साहब

काजी असगर अली


राय साहब की उपाधि त्यागने पर जनता ने वामनराव लाखे को लोकप्रिय की उपाधि दी थी।



कौंसिल और चुनावों का बहिष्कार:-

रायपुर विधानसभा का त्याग किया---      बाजीराव कृदत्त ने 


प्रांतीय विधानसभा का त्याग किया---    यादवराव देशमुख ने 

आनरेरी मजिस्ट्रेट के पद का त्याग किया---    काजी असगर अली ने (काजी शेर खां)




विदेशी वस्तुओं का त्याग:-
1 अगस्त 1921 को रायपुर में विशाल जुलुस निकालकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया--

प्रभुलाल काबरा और रत्नाकर झा ने 




सकारात्मक प्रभाव


खादी का प्रचार:--
स्वदेशी वस्त्रों के प्रचार के लिए ---

धमतरी में----    छोटेलाल श्रीवास्तव ने 

बिलासपुर में----    देवतादीन तिवारी और कैलाश सक्सेना ने 

राजिम में----    सुन्दर लाल शर्मा ने स्वदेशी दुकान खोला 

11 अक्टूबर 1921 में रावणभाठा (रायपुर) में खादी प्रदर्शनी लगाई गई। 






मद्य निषेध:-
पं. सुंदरलाल शर्मा और कुतुबुद्दीन ने मद्य निषेध हेतु आंदोलन चलाया। 




राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना:-
रायपुर में---    माधव राव सप्रे ने स्थापना की (5 फरवरी 1921 में), हेडमास्टर थे---    रामनारायण तिवारी 

धमतरी में---    छोटेलाल श्रीवास्तव ने 

बिलासपुर में---    बद्रीनाथ साव ने 





राष्ट्रीय पंचायतों की स्थापना:-
रायपुर में---    सेठ जसकरण डागा (संस्थापक)
                      स्थापना-- 4 मार्च 1921 में 
                      15अक्टूबर 1931 तक काम करती रही 
                      85 मामलों का समाधान किया। 


धमतरी में---    बाजीराव कृदत्त ने 










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