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पर्यावरण संरक्षण पर निबंध- 750 Words

  

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण संरक्षण


        "प्रकृति की देखभाल का अर्थ है वास्तव में लोगों की देखभाल करना। हम वह आखिरी पीढ़ी हैं, जो पृथ्वी और उसके निवासियों को होने वाली अपूरणीय क्षति से बचा सकते हैं। हम इस समय दोराहे पर खड़े हैं। यह वह समय है, जब हमें यह तय करना है कि हम किस मार्ग पर चलेंगे, जिससे हम वैश्विक तापमान में वृद्धि के ऐसे मुकाम पर न पहुंच जाएं जहां से लौटना असंभव हो।" 

                                                ............मरिया फर्नांडा एस्पिनोसा (पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष) 



        पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से हुआ है, "परि" जो हमारे चारों ओर हैं "आवरण" जो चारों ओर से घेरे हुए हैं। अर्थात पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्वों की एकीकृत इकाई है जो परितंत्रीय जनसंख्या को घेरे हुए हैं तथा उस जनसंख्या के रूप, जीवन आदि कारकों को प्रभावित करती हैं। एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए स्वस्थ पर्यावरण सबसे अधिक आवश्यक है। हम मनुष्यों ने अपने अति-महत्वाकांक्षा के कारण वश इस पर्यावरण को इतनी अधिक क्षति पहुंचाई है कि आज इसका संरक्षण करना अति आवश्यक हो गया है। पर्यावरण को संरक्षण देना भी हमारी ही आवश्यकता है क्योंकि हम मनुष्य का जीवन इसी पर निर्भर है। 

       

        प्राचीन भारतीय इतिहास की ओर हम देखते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि हमारे पूर्वज प्रकृति प्रेमी थे तथा सदैव पर्यावरण की रक्षा करते थे। वह प्रकृति से उतना ही लेते थे जितनी आवश्यकता होती थी। आज भी आदिवासी समाज पर्यावरण प्रेमी है और वृक्षों की पूजा करते है, उसका संरक्षण हैं। वे पर्यावरण से उतना ही लेते हैं जितना उनको आवश्यक होता है। सम्राट अशोक ने सबसे पहले पर्यावरण संरक्षण के लिए वनों, वन्य-जीवों, पशुओं पर दया भाव रखने तथा उन्हें नुकसान न पहुंचाने का आदेश अपने शिलालेखों के माध्यम से जारी किया था। भारतीय संस्कृति में वृक्षों में ईश्वर का वास माना जाता है तथा वृक्षों की रक्षा करने की सीख दी जाती है। 

        


        लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य स्वार्थ वश प्रकृति का आवश्यकता से अधिक दोहन कर पर्यावरण को कुछ ही वर्षों में इतनी अधिक क्षति पहुंचा चुका है जितना हजारों सालों में हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार औद्योगिकण के कारण विश्व के तापमान में 2100 ई. तक 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक की वृद्धि हो जाएगी। इतना तापमान ग्लेशियरों में जमे बर्फ को पिघला देने में सक्षम है, जिससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ जाएगा और समुद्रों के किनारे बसने वाले को छोटे-छोटे देश जैसे:- वियना, जेनेवा, मालदीव इत्यादि जल मग्न हो जाएंगे। 

       

        पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर कई सम्मेलन हुए हैं जैसे:- 1987 का मांट्रियल सम्मेलन, 1997 का क्योटो सम्मलेन, 1992 का रियो पृथ्वी सम्मेलन तथा 2015 का पेरिस जलवायु सम्मेलन। पेरिस जलवायु सम्मेलन के अनुसार वैश्विक स्तर पर सभी देश बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित रखने का प्रयास करेंगे। इसके लिए विभिन्न देशों ने अपने-अपने देशों में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को कम करने का लक्ष्य रखा है। 

        

        भारत में भी कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को 2005 के मुकाबले 30% तक कम करने की प्रतिबद्धता दर्शायी है।  साथ ही गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से 2022 तक 175 GW ऊर्जा उत्पादन क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा सरकार इलेक्ट्रॉनिक वाहनों पर कम टैक्स लगाकर लोगों को पेट्रोल डीजल से चलने  वाले वाहनो के स्थान पर प्रोत्साहन दे रहे हैं। 

        

        लोगों को भी अपने घरों में सौर ऊर्जा पैनल लगवाना चाहिए। जिससे उन्हें मुफ्त ऊर्जा तो मिलेगी ही साथ ही साथ पर्यावरण की भी रक्षा होगी। इसके अलावा अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए, प्लास्टिक का उपयोग पूरी तरह बंद कर देना चाहिए, क्योंकि प्लास्टिक ही सबसे अधिक प्रदूषण कारक ठोस अपशिष्ट पदार्थ हैं, इसके अलावा कागजों को रिसाइकल कर उन्हें पुनः उपयोग में लाना चाहिए, जिससे पेड़ों की रक्षा होगी। पेट्रोल डीजल चलित वाहनों का कम से कम उपयोग करना चाहिए। आसपास के जल संसाधनों को रखना चाहिए, ताकि उस जल में रहने वाले जीवो को स्वच्छ वातावरण मिले मिले। 

प्लास्टिक-अपशिष्ट

        पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार तो प्रयास करेगी ही साथ ही साथ यह हम नागरिकों व प्रत्येक पृथ्वी वासियों का यह मौलिक कर्तव्य है कि हम उस पर्यावरण की रक्षा करें जिस पर हमारी सभ्यता, हमारा समाज, हमारा परिवार तथा हमारा जीवन निर्भर है। उत्तराखंड के चिपको आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के लिए मानव सभ्यता द्वारा उठाया गया सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसमे पेड़ो को काटने से बचाने के लिए लोग पेड़ो से चिपक गए थे। उस आंदोलन के कारण पेड़ कटाई को रोकना पड़ा था। 

चिपको-आंदोलन


        समय है ऐसे ही कुछ और ऐसे ही सशक्त आंदोलनों का ताकि पर्यावरण की रक्षा हो। अब भी समय है संभलने का अथवा प्रकृति से शक्तिशाली कोई नहीं। 

नदिया मुझसे कह रही, चुभता एक सवाल। 

कहां गया पर्यावरण, जीना हुआ मुहाल।। 

तान कुल्हाड़ी है खड़ा, मानव जंगलखोर। 

मिट रहा पर्यावरण, चोर मचाए शोर।। 





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