:ताला का दुर्लभ रुद्रशिव प्रतिमा:
1987-88 के दौरान देवरानी मंदिर के समीप खुदाई में भगवान शिव की एक बेहद अनोखी ‘रुद्र’ छवि वाली मूर्ति प्रकट हुई।
शिव की यह अनूठी मूर्ति विभिन्न प्राणियों का उपयोग करके तैयार की गई है।
प्रतीत होता है कि मूर्तिकार ने अपने शरीर रचना का हिस्सा बनने के लिए हर कल्पनीय प्राणी का उपयोग किया है, जिसमें से नाग एक पसंदीदा प्रतीत होता है।
कोई भी ऐसा महसूस कर सकता है जैसे पृथ्वी पर जीवन के विकास को इस सृजन के लिए थीम के रूप में लिया गया है।
रूद्रशिव के नाम से संबोधित इस प्रतिमा एक विशाल एकाश्ममक द्विभूजी प्रतिमा समभंगमुद्रा में खड़ी है।
इसकी ऊंचाई 2.70 मीटर है।
यह प्रतिमा शास्त्र के लक्षणों की दृष्टी से विलक्षण प्रतिमा है |
इसमें मानव अंग के रूप में अनेक पशु, मानव अथवा देवमुख एवं सिंह मुख बनाये गये है |
इसके सिर का जटामुकुट (पगड़ी)------- जोड़ा सर्पों से निर्मित है |
हाथ एवं अंगुलियों को सर्प के भांति आकार दिया गया है |
इसके अतिरिक्त प्रतिमा के ऊपरी भाग पर दोनों ओर एक-एक सर्पफण छत्र कंधो के ऊपर प्रदर्शित है |
इसी तरह बायें पैर लिपटे हुए, फणयुक्त सर्प का अंकन है |
दुसरे जीव जन्तुओ में कान एवं कुंडल------ मोर से,
आँखों की भौहे एवं नाक------ छिपकली से,
मुख की ठुड्डी------ केकड़ा से
तथा भुजायें------ मकरमुख के समान हैं |
निर्माण शैली के आधार पर ताला के पुरावशेषों को छठी शती ईसवीं के पूर्वाद्ध में रखा जा सकता है, जो कि शरभपुरीय वंश का काल था।
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