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जलियावाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)

 

जलियावाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)

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13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन शाम को लगभग साढ़े 4 बजे अमृतसर के जलियावाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमे लगभग 20,000 व्यक्ति एकत्रित हुए थे। जनरल डायर 3 मिनट के अंदर भीड़ को हटाने का आदेश देकर कुछ सैनिकों के साथ बाग के मुख्य दरवाजे पर खड़ा हो गया तथा गोली चलने का आदेश दे दिया, जिसमें 1000 लोग मारे गए एवं 3000 घायल हुए। हालांकि सरकारी रिपोर्ट का मानना है कि 379 व्यक्ति मारे गए एवं 1200 घायल हुए। इस हत्याकांड में हंसराज नामक एक भारतीय ने डायर का सहयोग किया था। 



"दीनबंधु एफ. एंड्रूज़ ने इस हत्याकांड को 'जानबूझकर' की गई क्रूर हत्या कहा। "

"मांटेग्यू तक ने निवारक हत्या कहकर तीव्र भर्त्सना की। "


जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ. डायर था, जिसने डायर के इस कृत्य के संदर्भ में कहा कि- "तुम्हारी कार्यवाही ठीक है, गवर्नर इसे स्वीकार करता है।" 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में माइकल ओ'डायर  को सरदार उधम सिंह ने 2 गोली मार हत्या कर दी। 



घटनाक्रम:-

गांधी जी तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबंध लगे होने के कारण वहां की जनता में बढ़ा आक्रोश व्याप्त था। यह आक्रोश उस समय अधिक बढ़ गया जब पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉक्टर सत्यपाल एवं सैफुद्दीन किचलू को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में जनता ने एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला। पुलिस ने जुलूस को आगे बढ़ने से रोका और रोकने में सफल न होने पर आगे बढ़ रही भीड़ पर गोली चला दी, जिसके परिणाम स्वरूप 2 लोग मारे गए। 

जुलूस ने उग्र रूप धारण कर लिया, सरकारी इमारतों को आग लगा दिया और इसके साथ ही 5 गोरो को जान से मार दिया। अमृतसर शहर की स्थिति से बौखला कर सरकार ने 10 अप्रैल 1919 को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल डायर को सौंप दिया। उसने 12 अप्रैल को कुछ गिरफ्तारियां करवाई। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन करीब 4:00 बजे अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन हुआ। दूसरी ओर डायर ने उस दिन 9:30 बजे सभा को असंवैधानिक घोषित कर दिया। सभा में डॉक्टर किचलू और सत्यपाल की रिहाई एवं रौलट एक्ट के विरोध में भाषण बाजी हो रही थी। ऐसे में जनरल डायर 3 मिनट के अंदर भीड़ को हटाने का आदेश देकर कुछ सैनिकों के साथ बाग के मुख्य दरवाजे पर खड़ा हो गया लगभग 1650 गोलियां 303 नंबर की चली, जिसमें 1000 लोग मारे गए एवं 3000 घायल हुए उसे सरकारी रिपोर्ट का मानना है कि 379 व्यक्ति मारे गए एवं 1200 घायल हुए। 

इस बर्बर हत्या कांड के बाद 15 अप्रैल को पंजाब के लाहौर, गुजारांवाला, कसूर, शेखपुरा एवं वजीराबाद में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया, जिसमें लगभग 298 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर अनेक तरह की सजाएं दी गई। 


                

पद त्याग व् उपाधि त्याग:-

भारतीय सदस्य शंकर नायर ने इस हत्याकांड के विरोध में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद से इस्तीफा दे दिया।


रविंद्र नाथ टैगोर ने क्षुब्ध होकर "सर" की उपाधि वापस कर दी साथ ही उन्होंने कहा कि- "समय आ गया है कि जब सम्मान के तमगे अपमान के बेतुके संदर्भ में हमारे कलंक को सुस्पष्ट कर देते हैं और जहां तक मेरा प्रश्न है मैं सभी विशेष उपाधियों से रहित होकर अपने देशवासियों के साथ खड़ा होना चाहता हूं। "


इस कांड के बारे में थॉमसन एवं गैरेट ने लिखा है कि- अमृतसर दुर्घटना भारत-ब्रिटेन संबंधों में युगांतरकारी घटना थी, जैसा कि 1857 का विद्रोह। 


हंटर कमेटी का गठन:-

हंटर कमेटी सरकार ने विवशता में जलियांवाला बाग घटना की जांच हेतु 1 अक्टूबर 1919 को "लॉर्ड हंटर" की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की। 8 सदस्यों वाले इस आयोग में 5 अंग्रेज एवं 3 भारतीय सदस्य चिमन सीतलवाड़, साहबजादा सुल्तान अहमद एवं जगत नारायण थे। 

हंटर कमेटी ने मार्च 1920 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इसके पहले ही सरकार ने दोषी लोगों को बचाने के लिए "इन्डेम्निटी बिल" पास कर दिया था। कमेटी ने संपूर्ण प्रकरण पर लीपापोती करने का प्रयास किया। पंजाब के गवर्नर को निर्दोष घोषित कर दिया गया। समिति ने डायल पर दोषों का बोझ डालते हुए कहा कि- 'डायर ने अपने कर्तव्यों को गलत समझते हुए जरूरत से अधिक बल प्रयोग किया, पर जो कुछ किया निष्ठा से किया।  

तत्कालीन भारत सचिव मांटेग्यू ने कहा कि- 'जनरल डायर ने जैसा उचित समझा उसके अनुसार बिल्कुल नेकनियति के साथ कार्य किया, अतः उससे परिस्थिति को ठीक ठाक समझने में गलती हो गई।'

डायल को उसके अपराध के लिए नौकरी से हटाने का दंड दिया गया। ब्रिटेन के अखबारों ने उसे "ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक" एवं ब्रिटिश लॉर्ड सभा ने उसे "ब्रिटिश साम्राज्य का शेर" कहा। सरकार ने उसकी सेवाओं के लिए उसे "मान की तलवार" की उपाधि प्रदान की।


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आयोग:-

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस घटना की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में एक आयोग नियुक्त किया जिसके अन्य सदस्य पं. मोतीलाल, गांधीजी, अब्बास तैयब जी, सी. आर. दास एवं पुपुल जयकर थे। कांग्रेस द्वारा नियुक्त जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में अधिकारियों के इस बर्बर कृत्य के लिए उन्हें निंदा का पात्र बताया और सरकार से दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही एवं मृतकों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने की मांग की। पर सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 


परिणाम:-

  • परिणाम स्वरुप गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की भूमिका बनाई।
  • जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय ही पंजाब में चरणदीप के नेतृत्व में एक डंडा फौज का गठन हुआ। 
  • डंडा फौज के सदस्य लाठियों एवं चिड़ीमार बंदूकों से लैस होकर सड़कों पर गश्त लगाते और पोस्टर चिपकाते थे।



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