पंडित सुंदरलाल शर्मा
छत्तीसगढ़ के स्वप्नद्रष्टा पंडित सुंदरलाल शर्मा जी महान समाजसेवी दार्शनिक तथा साहित्यकार थे।
जन्म :- सन 1881 में उनका जन्म हुआ था।
स्थान :- राजिम की पावन धरा के चमसुर गांव में
पिता :- पंडित जियालाल तिवारी
माता :- देवमती थी
पत्नी :- बोधनी बाई थी
पुत्र :- नीलमणि व विद्याभूषण
1898 में उनकी कविताएं "रसिक मित्र" के प्रकाशित होने लगी।
विश्वनाथ दुबे के सहयोग से उन्होंने "कवि समाज" की स्थापना की
महंत नैनदास के साथ "गोवध निषेध" आंदोलन चलाया
1914 में राजिम में पुस्तकालय की स्थापना की।
1918 में भगवान राजीव लोचन मंदिर (राजिम) में कहारों के प्रवेश का आंदोलन चलाया।
1920 में असहयोग आंदोलन के दौरान कंडेल नहर सत्याग्रह का सफल संचालन किया।
आंदोलन की बागडोर महात्मा गांधी को सौंपने के लिए शर्मा जी 2 दिसंबर 1920 को कलकत्ता गये तथा उन्हें साथ लेकर 20 दिसंबर 1920 को लौटे।
1924 में सतनामी आश्रम की स्थापना रायपुर में की।
सहयोगी :- ठाकुर प्यारेलाल सिंह तथा घनश्याम सिंह गुप्त ।
1933 में गांधीजी ने अपने द्वितीय आगमन पर शर्मा जी को हरिजन उत्थान क्षेत्र में अपना गुरु माना।
राष्ट्रीय आंदोलन ही नहीं अपितु साहित्य के क्षेत्र में भी उनका उल्लेखनीय योगदान था।
उन्होंने लगभग 20 ग्रंथ लिखे जिसमें 4 नाटक, 2 उपन्यास तथा शेष काव्य रचनाएं हैं।
"छत्तीसगढ़ दानलीला" तथा "पहलाद पच्चीसी" विशेष रचनाएं हैं।
जेल में रहते हुए भी "श्री कृष्ण जन्म स्थान पत्रिका" का संपादन किया।
छत्तीसगढ़ी पत्रिका "दुलरुवा" का भी संपादन किया।
छत्तीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले शर्मा जी का निधन 28 दिसंबर 1940 को हो गया।
सम्मान :- लोक साहित्य के क्षेत्र में शिखर सम्मान इनके नाम से राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाता है।
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